Monday, 26 August 2013

ग़ज़ल – “बरसात में”

"खुली बरसात में तुमसे मिलें तो क्या मज़ा आये,
खुले अंदाज़ में तुमसे कहें तो प्यार बढ़ जाए।

कभी हो तेज बारिश हो कभी रिमझिम फुहारों सी,
खुले गेसू जो भीगें तन लिपट कर साँप  बल खाए।

चले हौले हवा जब भी बदन में रोंगटे उठते,
तुम्हारी हर छुअन हँस कर मुझे पागल करे जाए।

दुपट्टा डालती सर पर दबाती मुँह  से तुम अपने,
शरम आँखों से छलके औ तबस्सुम लब तेरे छाए।

नहीं मन है नहीं करता की तुम अब दूर मुझसे हो,
कहो क्या मन तुम्हारे है बसा मुझको भी दिख पाए।"

....... राजेश सक्सेना "रजत"
                    20.07.13