Thursday 26 January 2012

“जय हिंद!”

(गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें)

आज सुबह पौ फटते ही,
चिड़िया बोली ……. जय हिंद!

नदियों की कल-कल से बोली,
गूँज उठी ……. जय हिंद!

भारत माँ के बच्चे मुखरित सब,
हैं भजते ……. जय हिंद!

झंडे के अभिवादन में सब,
नत मस्तक ……. जय हिंद!

राजेश सक्सेना "रजत"
       26.01.12


Sunday 8 January 2012

नज़्म – “कंपकपाते हाथ”

दिन हो चाहें रात ओढ़े तन पे इक मन थान सब,
कंपकपाते हाथ गोया सर्द मौसम आ गया.

थोड़ी सी ही बात पर अब खौलता है खून सब,
कंपकपाते हाथ गोया इंकलाबी आ गया.

इक जुनूँ यह भी जहाँ बन जानवर इन्सान सब,
कंपकपाते हाथ गोया कत्ल में थर्रा गया.

लालची का साथ पाकर लालची शैतान सब,
कंपकपाते हाथ गोया इल्म-ए-रिश्वत आ गया.

ढेर सारे मशविरे औ कुछ किताबी ज्ञान सब,
कंपकपाते हाथ गोया पल मिलन का आ गया.

जब अधूरा ज्ञान जा बैठे मियाँ इम्तिहान सब,
कंपकपाते हाथ गोया सख्त परचा आ गया.

पाला पोसा नाज़ से था, दी दुआओं की अजान,
कंपकपाते हाथ गोया रुखसती पल आ गया. (बेटी की रुखसती)

अब नहीं सुलगे अंगीठी गीली लकड़ी जान सब,
कंपकपाते हाथ गोया है बुढ़ापा आ गया.

था जिगर अब शांत उनका अलविदा अज्ञान सब,
सध रहे थे हाथ गोया रुखसती पल आ गया. (दुनिया से रुखसती)

(गोया / Goya - speaking, as if)

राजेश सक्सेना "रजत"
                                                         06.01.12