Sunday 8 January 2012

नज़्म – “कंपकपाते हाथ”

दिन हो चाहें रात ओढ़े तन पे इक मन थान सब,
कंपकपाते हाथ गोया सर्द मौसम आ गया.

थोड़ी सी ही बात पर अब खौलता है खून सब,
कंपकपाते हाथ गोया इंकलाबी आ गया.

इक जुनूँ यह भी जहाँ बन जानवर इन्सान सब,
कंपकपाते हाथ गोया कत्ल में थर्रा गया.

लालची का साथ पाकर लालची शैतान सब,
कंपकपाते हाथ गोया इल्म-ए-रिश्वत आ गया.

ढेर सारे मशविरे औ कुछ किताबी ज्ञान सब,
कंपकपाते हाथ गोया पल मिलन का आ गया.

जब अधूरा ज्ञान जा बैठे मियाँ इम्तिहान सब,
कंपकपाते हाथ गोया सख्त परचा आ गया.

पाला पोसा नाज़ से था, दी दुआओं की अजान,
कंपकपाते हाथ गोया रुखसती पल आ गया. (बेटी की रुखसती)

अब नहीं सुलगे अंगीठी गीली लकड़ी जान सब,
कंपकपाते हाथ गोया है बुढ़ापा आ गया.

था जिगर अब शांत उनका अलविदा अज्ञान सब,
सध रहे थे हाथ गोया रुखसती पल आ गया. (दुनिया से रुखसती)

(गोया / Goya - speaking, as if)

राजेश सक्सेना "रजत"
                                                         06.01.12

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