Friday 30 November 2012

"जिंदगी का सफ़र"

छोटा सफ़र था मेरा, सब काम कर चुका था,
हर पल को जी के मैं तो, आराम को रुका था।

आगे की जिंदगी भी, मदमस्त होगी यारों,
ऐसे करम हैं मेरे, कुछ भी नहीं फुका था।

क्यूँ स्वाद के लिए हमउड़ते जमीं को छोड़े,
मेरा करम तो यारों, उबला हुआ छुका था।

जो घर की कोठरी के, दरीचों को खोल रक्खा,
सर फक्र से था ऊँचा, तालीम में पका था।

सोहबत बला की रक्खी, अपनों की थी नसीहत,
रहम-ओ-करम था उसका, उसकी तरफ झुका था।

वह दोस्त मेरा हरदम, खेले था दाँव पेंचें,
दो चार करते करते, आख़िर में जा ठुका था।

                                                          ................  राजेश सक्सेना "रजत'
                                                                                      21.11.12




Friday 31 August 2012

"आनंद" - अनुभूतिपरक निबंधों के संकलन में एक निबंध मेरा भी


"आनंद" पुस्तक का विमोचन 28 .07 .12  को लखनऊ में मुख्य अतिथि, माननीय श्री ह्रदय नारायण  दीक्षित जी (सदस्य, उत्तर प्रदेश विधान परिषद् ) के कर कमलों द्वारा किया गया.

यह पुस्तक "आनंद", अनुभूतिपरक निबंधों का संकलन है, जिसमें मेरा लिखा निबंध, 14  निबंधों में शामिल किया गया है.

कार्यक्रम इंदिरा गाँधी प्रतिष्ठान, गोमती नगर, लखनऊ में सम्पन्न हुआ.

इस पुस्तक का संपादन सुश्री आकांक्षी श्रीवास्तव ने किया है.


(मंच पर मुख्य अतिथि के साथ उपस्थित लेखक गण)


(मंच पर मुख्य अतिथि के साथ उपस्थित लेखक गण)



(पुस्तक विमोचन)



("आनंद" पुस्तक का मुख्य पृष्ठ)



(पुस्तक विमोचन कार्यक्रम)


(आमंत्रण-पत्र)


पुस्तक क्रय

From the Publishing House

VLMS Publishers is proud to have released its book "ANAND" a beautiful compilation of Hindi Nibandh on various Intelligible topics like Prem, Anand, Dharm-Karm to name a few....

This commendable book is available in Universal book Store Hazratganj Lucknow. 

Those who would like to avail a 10% discount on the same can directly purchase it from the office of VLMS at M - 2/98 Vinay Khand Gomti Nagar Lucknow

Outstation customers can book their copy with Ms. Rekha / Mr. Arvind @ 09125137173 / 0522 - 6002600 or can also mail us at books.vlms@gmail.com

In case of direct purchase from VLMS the total amount can be deposited in our account, details given below:

Name : Nityanand Tiwari 
Bank : Axis Bank
Branch : Dwarka New Delhi  
A/c no 278010100058371
IFSCode : UTIB0000278

Monday 2 July 2012

रजत की डायरी - 01.07.12 - रविवार - "बाग़-ए-दुपहरी"

दिन चढ़ रहा है. ग्यारह बजे हैं और मैं पंजाबी बाग़ में घूमता हुआ, किसी बाग़ की तलाश में हूँ. आषाढ़ मास, शुक्ल पक्षचतुर्दशी है. तपती दुपहरी में तीन से साढ़े तीन घंटे यूँ ही गुजारने हैं. बेटा भविष्य निर्माण की प्रक्रिया में तीन घंटे तक परीक्षारत  रहेगा. मैं भी यूँ ही समय के साथ वक्त गुजारूँगा.

बस मिल ही गया एक उपवन. उसमें ढूँढा सबसे घना पेड़ और चबूतरे पर जमा ली चड्ढी.

साढ़े ग्यारह बजे हैं. संचार यंत्र से जीवन के कण्ट्रोल रूम को सूचना प्रेषित कर दी है. मौका-ए-हालत का जायज़ा दे दिया है.

एक नौज़वान का सवेरा हो चला है. Walkway पर दौड़ उसकी शरू हो गयी है, जो एक चक्कर के बाद कदमताल में तब्दील हो गयी है.

एक बिल्ली दबे पाँव लगता है शिकार की तलाश में घूम रही है. उसकी सेहत से यह अंदाज़ा जरूर मिल रहा है की वह फुर्तीली है और शिकार उसे रोज मिलते हैं.

मेरे ही तरह कुछ और लोग भी जगह खोजते हुए आ गए हैं.

अरे यह क्या, एक और नौजवान Walkway पर धीमी गति से टहलता हुआ कान में कुछ खोंचे हुए, अपने में ही बतियाते हुएधूप का आनंद ले रहा है. शायद पेंगें बढ़ाने  की यही आधुनिक सुरक्षित परंपरा है.

कॉपी या पुस्तिका मैं साथ लाया नहीं. लिखने का मन चर्राने लगा तो अख़बार के हाशिये  बदस्तूर  आड़ी गलियों में कलम निकाल कर लिखने लगा हूँ.

चिड़ियों की चहचहाट, कोयल की कूकअंजान पक्षियों की कुछ आवाजें ध्यान आकर्षित कर रही हैं.
पास के मकानों में छेनी-हथौड़ी की मार, टाइल्स की घिसाई व कटाई का संगीत सुनाई दे रहा है.
वाह, प्रिय गिलहरी की आवाजें भी आ रही हैं.

सर उठा के देखा, तो जामुन के पेड़ के नीचे बैठा पाया. बहुत छोटे-छोटे फल, जो अभी भुने चने के दाने की तरह दिख रहे हैं, बता रहे हैं कि बारिश आने में अभी कुछ देर और है. पंद्रह दिन, यह मेरा अनुमान है. मौसम विभाग की तो वह ही जाने. उसे अपनी भविष्यवाणी संभल कर देनी होती है. पता नहीं दलाल पथ पर क्या प्रतिक्रिया हो जाये.

बगिया में फूल की कमी है. लगता है आज के समाज से रंग बहुत दूर चला गया है.

एक बूढ़ा व्यक्ति पैंट-कमीज़ में, स्पोर्ट्स शू पहने, एक पिट्ठू बैग, एक पानी कि बोतल लिएचबूतरे पर तशरीफ़ लाया है. दाढ़ी सफ़ेद बढ़ी हुयीअख़बार पर हाशिये पर छपे, बाबा नागार्जुन  की छायाप्रति से मिलता जुलता है कल ही तो उनकी जन्मतिथि थी. 30 जून को, 101 वर्ष हो गए.

एक मित्र ने फेसबुक पर, कल उन का जीवन वर्णन, एक कविता के साथ लिखा था और कुछ अन्य मित्रों ने  भी उनकी कुछ कविताओं को उद्ध्रत किया था. बड़ा आनंद आया.
आज सुबह अख़बार में "बोधिसत्व" की लिखी, उनको समर्पित कविता "स्वाहा" बहुत अच्छी लगी.

हवा और गर्म हो चली है. लो बारह बज गए.

अपने पिट्ठू बैग से पानी निकाल कर पिया. गर्मगर्म. 
सोचता हूँ ये चिड़ियाँ भीजब घर की छतों पर, टूटे मटके में, खुले में रखे पानी को पीती होंगी, तो ऐसा ही स्वाद आता होगा. गर्म गर्म.

संचार यंत्र फिर टनटना  उठा. कण्ट्रोल रूम ने स्थिति का जायज़ा लिया व दिशा निर्देश जारी हुए कि अपने को लू से बचाएं. तुरंत टैक्सी में बैठ कर पास के किसी मोहल्ले के मॉल में air conditioned माहौल का रुख करें.

आदेश पालन परमो धर्मः - आज का आम सूत्र.

यह सोचते हुए कदम टैक्सी कि तरफ़ बढ़ चले कि चिड़ियों को लू क्यूँ नहीं लगती है. वे भी तो इसी माहौल में खुले पार्क में चहचहा रही हैं. चलो कभी प्रोफेसर यशपाल से मिले तो यह सवाल जरूर पूछेंगे.

कुछ ही देर में हम मॉल संकृति में प्रवेश कर गए.
राजौरी गार्डन. अहा, यह भी गार्डन है. 
मॉल गार्डन एक के बाद एक-एक.
सोचा क्या करूँ.

कुल्फी खाई.

सभी मॉल में जहाँ-जहाँ किताबें रखी थीं, गया. हिंदी किताबों  के बारे में जानना चाहा. सेल्समेन एक दूसरे से पूछते दिखे. प्रतिशत के तौर पर, एक से दो प्रतिशत किताबें हिंदी में थीं और जो थीं भी वह रुचिकर नहीं थीं.
बस एक ही बात हिंदी प्रकाशकों से कहना चाहूँगा कि जो दीखता है वो बिकता है. Bring a Change.

दुबारा फिर प्यास लगी. कोल्ड ड्रिंक पी ली.

उसी स्टॉल पर बैठ कर लिखने लगा.

                                                              
                                                                  ………………….    राजेश सक्सेना "रजत"

Monday 18 June 2012

“ए बनारस !”


 बनारस !
ही पहुँचा,
दर पे तेरे ........... द्वार खोलो ........... मुक्ति दे दो.

क्यों प्रलोभन,
साँझ बेला में दिखे हैं,
बुद्ध का कुछ ........... ज्ञान दे दो.

है ये काशी,
जिसकी काशी ........... वो स्वयंभू सो रहा है.
दिन चढ़ा है,
तप रही धरती है देखो,
भभकता वातावरण है.
तन बहुत विक्षिप्त है ........... कुछ छाँव दे दो.

इस दुपहरी नींद में सोता प्रभु मैं,
हे विश्व के तुम नाथ !
हर लो नींद मेरी ........... आँख खोलो.

शान्त कर मेरी क्षुधा,
हे अन्नपूर्णा ! ........... अन्न का भंडार खोलो.

तुलसी मानस गीत सुनते,
भज रहा मैं राम हनुमत,
बंदरों के भाव चंचल,
बंदरों सा मेरा जीवन.

एक गंगा !
चांदनी बिछती थी जिस पर,
कुछ काल पहले ........... आज धुंधली हो गयी है.
हो भले ही,
मैल तुझमें,
आरती हर रोज होती,
एक आशा मन बसी ........... तुम साफ़ होगी.
दिन फिरें,
है यही  दरकार ...........  सरकार ! मेरे.

भारत !
खिलखिला तू,
आत्म विश्वास से,
अध्यात्म से.
हो समर्पित विश्व को,
संवेदना से,
संचेतना से,
सम्प्रेरणा से,
संज्ञान से,
विज्ञान से,
सत्य से,
प्रकाश से,
अमरत्व से ........... ज्ञान की आधार काशी.

बनारस !
थे तपस्वी,
हैं तपस्वी,
दे तपस्वी.
भेज दे चहुँ ओर ........... सन्देश वाहक.
खुदा ! हे भगवन !  बनारस !

                                                                 राजेश सक्सेना "रजत"
                                                            26.05.12 (बनारस) Afternoon


Friday 8 June 2012

"गीत"


गुनगुना रहा है कोई, दूर उस तरफ.
खुशनुमा माहौल है, दूर उस तरफ.

वादियों में रंग हैंचटक चटक से,
बादलों का संग है, दूर उस तरफ.

झरने जो गिर रहेदेते फुहार,
भीग रहा कोई, दूर उस तरफ.

सूरज भी ढ़लने लगा, शाम हो चली,
टिम टिम करे हैं तारे, दूर उस तरफ.

रातों को चाँद जैसेछत पर चढ़ा,
हँसने लगी है रात, दूर उस तरफ.

पलकों को नींद दे, सोन की परी,
थका कोई सो रहा, दूर उस तरफ.

नदियों की कल-कल से, नींद खुल रही,
सूरज संग लालिमा, दूर उस तरफ.


राजेश सक्सेना रजत
       13.01.12