Sunday 23 October 2011

"दीपावली के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं"

आतिशें चल रहीं, रौशिनी हर तरफ,
झिलमिलाते दियों का, समय आ गया.
टिमटिमाते दियों का, समय आ गया.

है मुबारक घड़ी, घर में भगवान हैं,
हाँ छछूंदर पे बैठा,  कोई आ गया.

था दियों को लगाया, हरेक द्वार पर,
मेरी किस्मत, उजाला था, घर आ गया.
उसकी रहमत, उजाला था, घर आ गया.

था बुहारा ये घरलीप कर हर तरफ,
संग रोली सजाकर, सजन भा गया.

सब दुआएं बुजुर्गों कीबख्शीश  थीं,
उनके चरणों को छू कर, मजा आ गया.
छू के चरणों को जन्नत, था मैं पा गया.

इस दिवाली से तुम, इतना रौशन बनो,
इस दिवाली से तुम, इतना ऊँचा उठो,
हर कोई कह उठे, आफताब आ गया.

(आफताब – Sun)

Tuesday 11 October 2011

"घर-घर में संगीत"

मूसलइमामदस्ते मेंकुछइस तरह बजे,
बारीक हो रहीहर चीज़धुन सजे.
                
फटकते सूप से, लगता है कोई, साज़ बज रहा,
मिटटी निकल रही, कूड़ा निकल रहा.

रगड़ती, गाय, अपनी पूँछ से, आवाज़ आती है,
है उसमें जान, परिंदों को वोह, पहचान जाती है.

जो फुकनी फूँकते, चूल्हे में सुर, ऐसा ही लगता है,
सुलगती आग है, , पतीले में, खाना पकता है.

अँधेरे कमरे में, मच्छर, कुछ यूँ , भिनभिनाते हैं,
होश  खोओ, "जागते रहो", राग गाते हैं.

कोठरी में रखा संदूक, खुले तो कुछ गुनगुनाये है.
तकलीफ घर में होअमानत काम आए है.

शादी औ रौनकों मेंफूल की परातें निकल रहीं,
सजें पकवान, लें, लुत्फ़ मेहमान, औ गिलासें खनक रहीं.

खौलता दूध कड़ाहे में, कड्छुल शोर बरपाए,
बने रबड़ी, मलाई, सब उंगली चाट-चाट खाएं.

जो जच्चा को हो बच्चा, घर में थाली या तवा बजता,
मुरादें पूरी करता जो, उसका दरबार फिर सजता.