मूसल, इमामदस्ते में, कुछ, इस तरह बजे,
बारीक हो रही, हर चीज़, धुन सजे.
फटकते सूप से, लगता है कोई, साज़ बज रहा,
मिटटी निकल रही, कूड़ा निकल रहा.
रगड़ती, गाय, अपनी पूँछ से, आवाज़ आती है,
है उसमें जान, परिंदों को वोह, पहचान जाती है.
जो फुकनी फूँकते, चूल्हे में सुर, ऐसा ही लगता है,
सुलगती आग है, औ, पतीले में, खाना पकता है.
अँधेरे कमरे में, मच्छर, कुछ यूँ , भिनभिनाते हैं,
होश न खोओ, "जागते रहो", राग गाते हैं.
कोठरी में रखा संदूक, खुले तो कुछ गुनगुनाये है.
तकलीफ घर में हो, अमानत काम आए है.
शादी औ रौनकों में, फूल की परातें निकल रहीं,
सजें पकवान, लें, लुत्फ़ मेहमान, औ गिलासें खनक रहीं.
खौलता दूध कड़ाहे में, कड्छुल शोर बरपाए,
बने रबड़ी, मलाई, सब उंगली चाट-चाट खाएं.
जो जच्चा को हो बच्चा, घर में थाली या तवा बजता,
मुरादें पूरी करता जो, उसका दरबार फिर सजता.
bahut sunder kavita ,facebook pe lautain sir-vinaya saxena ajmer
ReplyDeleteThis was really a Heart touching poem...
ReplyDeleteIt took time for me to get its meaning...
AWESOMEEEE.....