Sunday 22 May 2011

सूफी गीत - "मौला मेरे मौला ....................."

मौला, मौला, मौला, मौलामेरे मौला.............

अल्लाह ने नवाज़ा,
बड़े प्यार से, मेरे ख्वाजा,
मैं मुरीद बन गया हूँ,
जब से बुलावा आया,
जब नींद में बुलाया.
                                 
मौला, मौला, मौला, मौलामेरे मौला.............

मैं सर धरूँ टोकरिया,
नंगे पाँव, दरबार पहुंचूं.
तुझे चूमूं, करूँ मैं सदका,
तुझे चद्दर, फूल चढ़ाऊँ,
भर अंजुली, दूँ रेवड़ियाँ.      

मौला, मौला, मौला, मौलामेरे मौला.............

जो करूँ जतन कभी भी,
हर साँस में है तू ही,
है नमाज़ मेरी ख़ामोशी,
जगते हुए भी मदहोशी.

मौला, मौला, मौला, मौलामेरे मौला.............

मुझे पास तू बुला ले,
दरगाह में जगह दे,
मैं गीत तुझ पर लिखूं,
हर कौम फिर सराहे,

मौला, मौला, मौला, मौलामेरे मौला.............

मैं खाक में मिलूँ जब,
तेरे गीत बन कर बोलूँ,
गंग-जमुनी में बहूँ मैं,
और हिंद में मैं डोलूँ.

मौला, मौला, मौला, मौलामेरे मौला.............

Saturday 7 May 2011

झुमरी तिलैया

जो पहुंचे रात कोराँची से, मंज़र, खुशनुमा था.
बरसते बादलों संग, हो रहा, अपना सफ़र था.

सोचा,

हजारों बाग,हजारीबाग की, धरती पर होंगे.
जो फुरसत काम से मिल जाये, उनका, लुत्फ़ लेंगे.

यहीं तो पास में, "झुमरी तिलैया", गाँव भी है.
सुना है अभ्रक की खानों का, वहाँ, इतिहास भी है.

जहाँ पर काम करते, कर्मकारों, को सुनाने.
उनकी फरमाईश पर, विविध-भारती पर, बजते थे गाने.

होड़ थी खानों में, देखें, किसके-कितने, गीत बजते.
समूचे मुल्क में थे लोग, झुमरी तिलैया, नाम सुनते.

यहीं पर आज, विज्ञान का, अनूठा, पर्व होगा.
सभी के सहयोग से, वृहद्, ताप विद्युत् गृह होगा.

यहाँ पर खूबसूरत झील, डैम के, आगोश में है.
जब मौसम आए तो आनंद भी, पिकनिक, में है.

सरहद पर रक्षा करते, बाँकुरों के, बच्चों की खातिर.
प्रकृति की गोद में स्थित, एक, सैनिक स्कूल भी है.

है रुकती राजधानी पास, "कोडरमा", शहर में.
जहाँ पर भी, एक नवनिर्मित, ताप विद्युत् गृह है.

सुबह होती है, कुछ लोगों की, ताड़ी, के रस से.
हम शरीफों को यहाँ के, बस, कलाकंद, में रस है.

उठे सुबह तो खाया, नाश्ता, सत्तू-पराठा.
गटक कर भर गिलास दूध, काम में, सर खपाया.

तभी तक, चेहरे पर मेरे, चमक, हिन्दोस्ताँ थी.
हाँ, किस्से ! माओवादी सुन, याद भगवान की, की.

Sunday 1 May 2011

पिया गीत – “चिलचिलाती धूप में”

चिलचिलाती धूप मेंतेरा जल जाये तन,
रे पिया, मैंने ढक दिया, सूरज को बदरा बन.

जल रही धू - धू के धरती, गर्म हवाओं संग,
रे पिया, मैं जम के बरसी, बूँद ठंडी बन.

प्यास तुझको लग रही, और छटपटाए मन.
मैं सुराही बन पहुँच गई, पी ले मदिरा तन.

काज तुम संपन्न कर, जल्दी से आओ घर,
मैं तेरी बाँहों में झूलूँ, नन्ही मुन्नी बन.