जो पहुंचे रात को “राँची” से, मंज़र, खुशनुमा था.
बरसते बादलों संग, हो रहा, अपना सफ़र था.
सोचा,
हजारों बाग, “हजारीबाग” की, धरती पर होंगे.
जो फुरसत काम से मिल जाये, उनका, लुत्फ़ लेंगे.
यहीं तो पास में, "झुमरी तिलैया", गाँव भी है.
सुना है अभ्रक की खानों का, वहाँ, इतिहास भी है.
जहाँ पर काम करते, कर्मकारों, को सुनाने.
उनकी फरमाईश पर, विविध-भारती पर, बजते थे गाने.
होड़ थी खानों में, देखें, किसके-कितने, गीत बजते.
समूचे मुल्क में थे लोग, झुमरी तिलैया, नाम सुनते.
यहीं पर आज, विज्ञान का, अनूठा, पर्व होगा.
सभी के सहयोग से, वृहद्, ताप विद्युत् गृह होगा.
यहाँ पर खूबसूरत झील, डैम के, आगोश में है.
जब मौसम आए तो आनंद भी, पिकनिक, में है.
सरहद पर रक्षा करते, बाँकुरों के, बच्चों की खातिर.
प्रकृति की गोद में स्थित, एक, सैनिक स्कूल भी है.
है रुकती राजधानी पास, "कोडरमा", शहर में.
जहाँ पर भी, एक नवनिर्मित, ताप विद्युत् गृह है.
सुबह होती है, कुछ लोगों की, ताड़ी, के रस से.
हम शरीफों को यहाँ के, बस, कलाकंद, में रस है.
उठे सुबह तो खाया, नाश्ता, सत्तू-पराठा.
गटक कर भर गिलास दूध, काम में, सर खपाया.
तभी तक, चेहरे पर मेरे, चमक, हिन्दोस्ताँ थी.
हाँ, किस्से ! माओवादी सुन, याद भगवान की, की.
NICE THOUGHT
ReplyDeletemkg जी, कविता पसंद करने के लिए, धन्यवाद.
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