ए बनारस !
आ ही पहुँचा,
दर पे तेरे ........... द्वार खोलो ........... मुक्ति दे दो.
क्यों प्रलोभन,
साँझ बेला में दिखे हैं,
बुद्ध का कुछ ........... ज्ञान दे दो.
है ये काशी,
जिसकी काशी ........... वो स्वयंभू सो रहा है.
दिन चढ़ा है,
तप रही धरती है देखो,
भभकता वातावरण है.
तन बहुत विक्षिप्त है ........... कुछ छाँव दे दो.
इस दुपहरी नींद में सोता प्रभु मैं,
हे विश्व के तुम नाथ !
हर लो नींद मेरी ........... आँख खोलो.
शान्त कर मेरी क्षुधा,
हे अन्नपूर्णा ! ........... अन्न का भंडार खोलो.
तुलसी मानस गीत सुनते,
भज रहा मैं राम हनुमत,
बंदरों के भाव चंचल,
बंदरों सा मेरा जीवन.
एक गंगा !
चांदनी बिछती थी जिस पर,
कुछ काल पहले ........... आज धुंधली हो गयी है.
हो भले ही,
मैल तुझमें,
आरती हर रोज होती,
एक आशा मन बसी ........... तुम साफ़ होगी.
दिन फिरें,
है यही दरकार ........... ए सरकार ! मेरे.
ए भारत !
खिलखिला तू,
आत्म विश्वास से,
अध्यात्म से.
हो समर्पित विश्व को,
संवेदना से,
संचेतना से,
सम्प्रेरणा से,
संज्ञान से,
विज्ञान से,
सत्य से,
प्रकाश से,
अमरत्व से ........... ज्ञान की आधार काशी.
ए बनारस !
थे तपस्वी,
हैं तपस्वी,
दे तपस्वी.
भेज दे चहुँ ओर ........... सन्देश वाहक.
ए खुदा ! हे भगवन ! ए बनारस !
राजेश सक्सेना "रजत"
26.05.12 (बनारस) Afternoon
ए भारत !
ReplyDeleteखिलखिला तू,
आत्म विश्वास से,
अध्यात्म से.
हो समर्पित विश्व को,
संवेदना से,
संचेतना से,
सम्प्रेरणा से,
संज्ञान से,
विज्ञान से,
सत्य से,
प्रकाश से,
अमरत्व से ........... ज्ञान की आधार काशी.
बहुत खूब सर!
सादर
आभार यशवंत माथुर जी.
Deleteसादर.
यशवंत जी, जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. मैंने settings में correction कर दिया है. सादर.
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