गुनगुना रहा है कोई, दूर उस तरफ.
खुशनुमा माहौल है, दूर उस तरफ.
वादियों में रंग हैं, चटक चटक से,
बादलों का संग है, दूर उस तरफ.
झरने जो गिर रहे, देते फुहार,
भीग रहा कोई, दूर उस तरफ.
सूरज भी ढ़लने लगा, शाम हो चली,
टिम टिम करे हैं तारे, दूर उस तरफ.
रातों को चाँद जैसे, छत पर चढ़ा,
हँसने लगी है रात, दूर उस तरफ.
पलकों को नींद दे, सोन की परी,
थका कोई सो रहा, दूर उस तरफ.
नदियों की कल-कल से, नींद खुल रही,
सूरज संग लालिमा, दूर उस तरफ.
राजेश सक्सेना रजत
13.01.12
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यवाद यशवंत जी.
Deleteसादर.
बहुत सुन्दर शब्द चित्र...
ReplyDeleteप्रशंसा के लिए कोटि - कोटि धन्यवाद, कैलाश जी.
Deleteसादर.
कल 10/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
यशवंत जी, आप का आभारी हूँ, जो आपने इस रचना को अपने ब्लॉग के माध्यम से और पाठकों तक पहुँचाया.
Deleteसादर.
सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकोई तो है जो खींच रहा है पल-पल
मेरे मन का कोना, दूर उस तरफ
धन्यवाद, मधुरेश जी.
Deleteसादर.
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर
यशोदा जी, प्रशंसा के लिए आभार.
Deleteसादर.
बहूत हि सुंदर,,,
ReplyDeleteमनमोहक सी रचना....
रीना मौर्या जी, प्रशंसा से मुझे और नया लिखने की प्रेरणा मिलती है, धन्यवाद.
Deleteसादर.
सुन्दर चित्र खींचती पंक्तियाँ
ReplyDeleteधन्यवाद, ओंकार जी.
Deleteसादर.
सही कहा आपने रजतजी....हर अच्छाई हमेशा कुछ दूर ..उस तरफ ही दिखाई देती है ...सुन्दर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteसरस जी, प्रशंसा के लिए बहुत बहुत आभार.
ReplyDeleteसादर.