वो नन्हा सा बच्चा,
है नाज़ुक औ कच्चा,
ज़मीनी हक़ीक़त समझने से पहले,
वो अम्मा की गोदी और हाथों में खेला.
बहुत सख्त है ये ज़मीनी हक़ीक़त,
इसी सोच में माँ ने कालीन पे रखा.
वो लुढ़के इधर से उधर कुछ यूँ ऐसे,
जो छूता जमीं, पांव झट से हटाता,
समझने लगा जो ज़मीनी हक़ीक़त,
वो घुटनों के बल अब है दौड़ लगाता.
उसे "गर्भ माँ" से "जमीं गर्भ" का मिल गया वास्ता.
उसकी छाती पर अब पांव हौले से रखता,
कभी गिरता पड़ता और फिर संभलता.
लो, लगा दौड़ने अब वो मिटटी में लोटे,
पुख्ता जमीं पे आबो-हवा को है तौले.
हर इक चीज़ को गौर से देखता वो,
औ छूने की ख्वाहिश में मचला करे वो.
वो कानों में सुर ताल बजने लगे हैं,
सुने गौर से ध्यान जाने लगे है,
निरा स्वाद अब तो अनाजों में पाला,
हरी साग सब्जी मसालों में ढाला.
वो चट्खारें ले के अब खाने लगा है,
वो बच्चा मेरा गुनगुनाने लगा है,
गुनगुनाने लगा है, गुनगुनाने लगा है.
राजेश सक्सेना "रजत"
29.04.12
है नाज़ुक औ कच्चा,
ज़मीनी हक़ीक़त समझने से पहले,
वो अम्मा की गोदी और हाथों में खेला.
बहुत सख्त है ये ज़मीनी हक़ीक़त,
इसी सोच में माँ ने कालीन पे रखा.
वो लुढ़के इधर से उधर कुछ यूँ ऐसे,
जो छूता जमीं, पांव झट से हटाता,
समझने लगा जो ज़मीनी हक़ीक़त,
वो घुटनों के बल अब है दौड़ लगाता.
उसे "गर्भ माँ" से "जमीं गर्भ" का मिल गया वास्ता.
उसकी छाती पर अब पांव हौले से रखता,
कभी गिरता पड़ता और फिर संभलता.
लो, लगा दौड़ने अब वो मिटटी में लोटे,
पुख्ता जमीं पे आबो-हवा को है तौले.
हर इक चीज़ को गौर से देखता वो,
औ छूने की ख्वाहिश में मचला करे वो.
वो कानों में सुर ताल बजने लगे हैं,
सुने गौर से ध्यान जाने लगे है,
वो बोली में तुतला के बुलाने लगे है,
औ अपने जहन को बताने लगे है.निरा स्वाद अब तो अनाजों में पाला,
हरी साग सब्जी मसालों में ढाला.
वो चट्खारें ले के अब खाने लगा है,
वो बच्चा मेरा गुनगुनाने लगा है,
गुनगुनाने लगा है, गुनगुनाने लगा है.
राजेश सक्सेना "रजत"
29.04.12
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