बहुत खूबसूरत, ग़ज़ल लिख रहा हूँ
तुम्हें पढ़ रहा हूँ, गज़ब लिख रहा हूँ.
है उम्दा नज़रिया, है संजीदगी भी,
है मखमल में लिपटी, बहर लिख रहा हूँ.....
जो गाया वज़न दर वज़न हुस्न तेरा,
वो मिसरी सा मिसरा, सुखन लिख रहा हूँ.
तेरी गूंगी बोली छुपा काफिया है,
अलिफ़ में सजी एक नज़र लिख रहा हूँ.
रदीफ़ ए रवानी बहुत लुत्फ़ आता,
जवाँ दिल क़यामत कहर लिख रहा हूँ.
जो मतले से मचली जवानी दिवानी,
है मकते पे सजती ठहर लिख रहा हूँ.
मुकम्मल इबादत खुदा की इनायत,
है हर शेर पुख्ता ज़हन लिख रहा हूँ.
………………. राजेश सक्सेना "रजत"
02.02.12
02.02.12
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