"खुली बरसात में तुमसे
मिलें तो क्या मज़ा आये,
खुले अंदाज़ में तुमसे कहें तो प्यार बढ़ जाए।
कभी हो तेज बारिश हो कभी रिमझिम फुहारों सी,
खुले गेसू जो भीगें तन लिपट कर साँप बल खाए।
चले हौले हवा जब भी बदन में रोंगटे उठते,
तुम्हारी हर छुअन हँस कर मुझे पागल करे जाए।
नहीं मन है नहीं करता की तुम अब
दूर मुझसे हो,
कहो क्या मन तुम्हारे है बसा मुझको भी दिख पाए।"
खुले अंदाज़ में तुमसे कहें तो प्यार बढ़ जाए।
कभी हो तेज बारिश हो कभी रिमझिम फुहारों सी,
खुले गेसू जो भीगें तन लिपट कर साँप बल खाए।
चले हौले हवा जब भी बदन में रोंगटे उठते,
तुम्हारी हर छुअन हँस कर मुझे पागल करे जाए।
दुपट्टा डालती सर पर दबाती मुँह से तुम अपने,
शरम आँखों से छलके औ तबस्सुम लब तेरे छाए।
शरम आँखों से छलके औ तबस्सुम लब तेरे छाए।
कहो क्या मन तुम्हारे है बसा मुझको भी दिख पाए।"
....... राजेश सक्सेना
"रजत"
20.07.13
आपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 28/08/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in उमड़ते आते हैं शाम के साये........आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी है...बुधवारीय हलचल ....पर लिंक की जाएगी. आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
क्या कल्पना है !
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