तेरी आवाज़ को, सुनने को, मेरा दिल मचले.
खुली खिड़की से देखूं, बाग़ में तितली उड़े रे.
भाग कर मैं पकड़ लूं, करूँ मैं रंज फूलों को.
तेरे मखमल से, कोमल पंख को, छेड़ा करूँ रे.
जले मौसम हवाएं रूठ कर, बदनाम करती हैं.
तुझे पाकर, ज़माने के, गिले - शिकवे मैं सह लूं रे.
नहीं रखूंगा तुझको बाँध कर, चाहरदिवारी में,
खुला घर तेरी चाहत का, बनाऊँगा प्रिये रे.
खुली खिड़की से देखूं, बाग़ में तितली उड़े रे.
भाग कर मैं पकड़ लूं, करूँ मैं रंज फूलों को.
तेरे मखमल से, कोमल पंख को, छेड़ा करूँ रे.
जले मौसम हवाएं रूठ कर, बदनाम करती हैं.
तुझे पाकर, ज़माने के, गिले - शिकवे मैं सह लूं रे.
नहीं रखूंगा तुझको बाँध कर, चाहरदिवारी में,
खुला घर तेरी चाहत का, बनाऊँगा प्रिये रे.
Nice poem.
ReplyDeleteThanks Vineet.
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