Wednesday 16 March 2011

चाँद के बालों का पक्ष - विपक्ष

जब से गंजा हुआ हूँ मैं,
बालों की चिंता करता हूँ.
बस हाथ फेर कर चाँद तुझे,
उस चाँद  से तुलना करता हूँ.

कुछ जगें उम्मीदें जीवन में,
जब कोई निहारा करता है.
कंघी को पास में रखता हूँ,
छुप - छुप कर फेरा करता हूँ.

वोह चाँद बदलता है प्रतिपल,
इस चाँद बने प्रतिबिम्ब सरल.
जब ढोल हो, कोई गीत गुने,
इस चाँद पे तबला बजता है.

उस चाँद का तो दीदार सभी,
कुछ उम्मीदों से करते हैं.
इस चाँद को सर - आखों पे बिठा,
हम जीवन यापन करते हैं.

हे स्रष्टि रचयिता सर - खेती में,
कुछ बीज नए बो डालो जी.
कुछ बजट में तुम प्रावधान करो,
कोई  टैक्स कभी डालो जी.

चल पढ़ें, ‘चरक’ की बातों को,
घर - चौके में मलहम ढूढें.
जब मिले जो फुर्सत कामों से,
अनुलोम - विलोम, सभी कर लें.

हे विश्व सुंदरियों! समझो तो,
ज्योतिष विद्या की बातों को.
बिन बालों के इस चाँद में तो,
सांसारिक सुख सब बसते हैं.

मत भागो उन सर-बालों पर,
तुम अर्थशास्त्र को मान भी लो.
बिन बालों के इस मर्द के तो,
बहुतेरे खर्चे बचते हैं.

4 comments:

  1. visham paristhitiyon ka itni saralta se upay dhundh lena to koi apse sikhe.
    ati uttam

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  2. excellent piece of work .well rajesh how u manage all this .enjoyed a lot

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  3. तरुण जी, उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद.

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  4. अरुण, सब ईश्वर प्रदत्त है. पसंद करने के लिए धन्यवाद.

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