Saturday, 9 March 2013

“ग़ज़ल" - कुछ शरम तो करो


कुछ शरम तो करो,  क्यूँ मचलते हो तुम.
सब्र रखते नहीं, क्यूँ फिसलते हो तुम.

ना कोई है दिखे आज उम्मीद जो,
रात बीती बहुत क्यूँ टहलते हो तुम.

प्यार में मैंने थोड़ी सी चुटकी थी ली,
आग में क्यूँ बबूला उबलते हो तुम.

मैं तेरे पास हूँ, साथ ही में रहूँ,
है भरोसा नहीं, क्यूँ कि जलते हो तुम.

जब नहीं है रहा मुझ से अब वास्ता,
गिरगिटों की तरह क्यूँ बदलते हो तुम.

जब मेरी आँख से आह बहने लगे,
तब कहीं जा के ही क्यूँ पिघलते हो तुम.

                    ……         राजेश सक्सेना "रजत"
                                                    28.06.12

3 comments:

  1. वाह्ह्ह्ह्ह ,,,,बहुत ही बेहतरीन

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  2. वाह्ह्ह्ह्ह ,,,,बहुत ही बेहतरीन

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    1. mahfilejazbaat - आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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