Friday, 15 July 2011

कुछ पंक्तियाँ - "गुरु पर्व पर विशेष"

 से गरिमा है गुरु की,
 से उद्ध्रत क्या करूँ मैं,
 से रमने की कलाएं,
र से रमना वो सिखाएं,
 से ऊपर ही बढूँ मैं.

7 comments:

  1. वाह …………गुरु शब्द का सार्थक चित्रण कर दिया।

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  2. संगीता स्वरुप (गीत) जी और वंदना जी आप दोनों का प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद.

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  3. गुरु गोविन्द दोउ खरे काके लाग्यों पाए, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताये

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  4. गुरु की यह व्याख्या मुझे बहुत पसंद आई.

    अर्ज़ किया है,

    वो हैं स्याही मेरी कलम की
    जो न हों तो टूट जाए.
    ___ संकल्प सक्सेना

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  5. गौतम जी, आप का ब्लॉग पर स्वागत है. आप ने सही दोहा उद्ध्रत किया है. धन्यवाद.

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  6. संकल्प, गुरु की महिमा पसंद करने के लिए, धन्यवाद. आप ने सही कहा है कि कलम में स्याही ख़त्म तो जीवन रस में Spontaneity ख़त्म. वे मेरुदंड के सामान हैं.

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