शाम जब, चाँद चढ़े, छत पर, तुम आ जाना,
मैं, निहारूंगा तुझे, शरमा न तुम जाना.
बहुत शरारतें, कुदरत की, सावन में होतीं,
सभी, चर्चा करें, जो बूँदें, तुझको हैं डसती.
छपा-छप खेलती, पानी से, आप सावन में,
बड़े नसीब हैं, बूंदें गिरें, मेरी जिंदगानी पे.
लरज़ते बादलों से, गिरती है शबनम, आप पर ऐसे,
बसे पलकों पर ऐसे, सीप में, मोती बसे जैसे.
छमाछम बरसे पानी, भीगती हैं, आप कुछ ऐसे,
नयी दुल्हन पिया की, पहली छुअन से, तृप्त हो जैसे.
कहो मेघा से, बरसे जोर से, संग बिजली कड़काए,
सहम कर भीगी-भीगी तू, मेरी बाँहों में आ जाये.
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ReplyDeleteआपकी पोस्ट कल(3-7-11) यहाँ भी होगी
ReplyDeleteनयी-पुरानी हलचल
खूबसूरत सावनी रचना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteSangeeta ji, Yashwant Mathur ji, Bhaut Bahut Dhanyvad. Mujhe khushi hai ki aap ko meri rachna acchi lagi. Facebook per aap ka hardik swagat hai, jahan FB-Notes mein rachanayein aur kabhi kabhi wall par chadikayein bhi main post karta rahta hoon.
ReplyDeleteRegard, Rajesh Saxena "Rajat"
Vandana ji, Aap ka bahut bahut dhanyavad, meree kavita ko auron tak pahuchane ke liye.
ReplyDeleteRegards, Rajesh Saxena "Rajat"