तेरी पेशानी पे, ये शिकन कैसी,
मौत मेरी है, तुझे जलन कैसी.
रफ्ता-रफ्ता होती थी, जिंदगी बसर,
नज़र भेड़िये की, क्यूँ कर लगी ऐसी.
अल्लाह से माँग कर, साँसे जो ले रहा था,
तेरे नाम की हिचकी, गले में फाँस, लगी जैसी.
कायदा मौत का जो, मुझको तू समझा रहा,
पहले तू मर के दिखा, वरना तेरी ऐसी की तैसी.
काबिले गौर, तेरे हाथ का, खंजर है,
तेरे लब पे, मेरी वाह, आज सजी वैसी.
(पेशानी – Forehead, शिकन – Wrinkle)
वाह बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteकल 31/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
सुन्दर!!
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर
ReplyDeleteकायदा मौत का जो, मुझको तू समझा रहा,
ReplyDeleteपहले तू मर के दिखा, वरना तेरी ऐसी की तैसी.sahi bat...
बहुत खूब! बहुत खूबसूरत प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी.... जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!
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