Thursday, 3 November 2011

"मैं और तू"

तेरी पेशानी पेये शिकन कैसी,
मौत मेरी हैतुझे जलन कैसी.

रफ्ता-रफ्ता होती थीजिंदगी बसर,
नज़र भेड़िये की, क्यूँ कर लगी ऐसी.

अल्लाह से माँग करसाँसे जो ले रहा था,
तेरे नाम की हिचकी, गले में फाँस, लगी जैसी.

कायदा मौत का जो, मुझको तू समझा रहा,
पहले तू मर के दिखावरना तेरी ऐसी की तैसी.

काबिले गौर, तेरे हाथ का, खंजर है,
तेरे लब पे, मेरी वाह, आज सजी वैसी.

(पेशानी – Forehead, शिकन – Wrinkle)

8 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर रचना।

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  2. कल 31/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. कायदा मौत का जो, मुझको तू समझा रहा,
    पहले तू मर के दिखा, वरना तेरी ऐसी की तैसी.sahi bat...

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  4. बहुत खूब! बहुत खूबसूरत प्रस्तुति...

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  5. बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  6. बहुत ही अच्छी.... जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!

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