Thursday, 14 February 2013

“Valentine Ghazal” (वैलेंटाइन ग़ज़ल)

हँस कर उन्होंने प्यार से मेरा गुलाब ले लिया,
झुक कर जो मैंने प्यार से उनको गुलाब था दिया।

शरमा गए वो प्यार से मैंने गुज़ारिश थी करी,
हँस कर उन्होंने प्यार से घर का पता बता दिया।

मैंने उन्हें दी प्यार से सौगात Choclate की,
खा कर उन्होंने प्यार से गुस्सा रफ़ा दफ़ा किया।

देते ही भालू प्यार से जैसे खुला नसीब था,
मुझको समझ कर प्यार से सीने में था छुपा लिया।

शिकवे गिले जो प्यार से थे ताख़ पर रखे सभी,
खुद से बुलाकर प्यार से उनने गले लगा लिया।

जो कपकपाएं प्यार से ख़ुद होश में कहाँ रहें,
देखा इधर कुछ उधर अधरों का रस चखा दिया।

बीता समय जो प्यार से आया मधुर बसंत है,
हँस कर उन्होंने प्यार से फागुन का गीत गा दिया।


..........  राजेश सक्सेना "रजत"
                                                         14.02.13
 
 
 

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