Monday, 4 April 2011

लक्ष्य-पथ (टीम इंडिया को समर्पित)

यह कविता मैं, टीम इंडिया को समर्पित कर रहा हूँजिसने  02.04.2011 कोएक दिवसीय क्रिकेट विश्व कप जीत कर हम सभी भारतीयों को गौरवान्वित किया - प्रस्तुत है उनकी सफलता का सफ़र:

            लक्ष्य को सामने रख कर, जो मैंने पथ चुना था,
            था कठिन, फिर भी, मैं, उस पर, चल पड़ा था.

1.         उससे पहले, कौंधते थे, कानों में, कटाक्ष सारे.
उँगलियाँ उठतीं, कहीं थे, प्रश्न न्यारे.
सोचता / विचलित मैं होता, कुछ सही, कुछ गलत पाता.
आत्मा को कष्ट होता / खीझ भरती, मन ही मन, घुटता मैं जाता.

आज जीवन मोड़ पर, कुछ यूँ खड़ा था,
पाई थी मैंने चुनौती, मन लिया संकल्प था.

लक्ष्य को सामने रख कर, जो मैंने पथ चुना था,
था कठिन, फिर भी, मैं, उस पर, चल पड़ा था.

2.         प्रण के बाहुपाशों से, मन को था रोका.
पीछे खड़ी, विषकन्या को, मुड़कर देखा.
कानों में, मैं, पथ के, मद्धम गीत गाता.
सांसों की सरगम को मैं सुन्दर बनाता.

योगियों सा भाव अबछाने लगा था,  
धुन में रहता, पथ में रस, आने लगा था.

लक्ष्य को सामने रख कर, जो मैंने पथ चुना था,
था कठिन, फिर भी, मैं, उस पर, चल पड़ा था.

3.         घूमती / नाचती थीं, सामने मेरे कलाएं.
तुम भी, कुछ कोशिश करो / कुछ सीख लो, अपने बुलाएं.
सामने, पुस्तक खुली, पढ़ता, मैं जाता,
जो हो रहा था / आस-पास, योगियों सा, देखे जाता.

मन को, मेरा पथ, सुगम लगने लगा था,
अब धमनियों के रक्त से, मेरा हृदय दूषित नहीं था.

लक्ष्य को सामने रख कर, जो मैंने पथ चुना था,
था कठिन, फिर भी, मैं, उस पर, चल पड़ा था.

4.         सुन के आदर्शों को, मैंने साधना की,
नित नियम, संकल्प लेकरप्रार्थना की.
जैसे-जैसे दृढ़ता से, मैं प्रण निभाता,
आत्मा का और भी, सानिध्य पाता.

सुदूर मेरा लक्ष्य अब दिखने लगा था,
मैं, मोतियों सा अब, ककहरा, लिखने लगा था.

लक्ष्य को सामने रख कर, जो मैंने पथ चुना था,
था कठिन, फिर भी, मैं, उस पर, चल पड़ा था.

5.         क्या पितृ-ऋण, क्या मातृ-ऋण, सबको नमन कर,
ऋषियों-मुनियों, ज्ञानियों के, चरणों में झुककर.
साधना के साधनों और, माध्यमो संग,
विद्वेष हृदय से निकालूँ, पाकर मैं सत्संग धन्य.

सबका आशीर्वाद अब, मिलने लगा था,
पथिक के, पथ के अंधियारे, में, नया सूरज उगा था.

लक्ष्य को सामने रख कर, जो मैंने पथ चुना था,
था कठिन, फिर भी, मैं, उस पर, चल पड़ा था.

6.         सब अचंभित, देखकर, गुणगा गाते,
तुम ही थे कल के कुपुत्र, सुपुत्र बन उनको हो भाते.
सौम्य अब चेहरा, तेरा, लगने लगा है,
सबके मन में, आशा का, एक दीप, जला है.

गए तुम लक्ष्य को, तुमने था सोचा,
ईश ने उस पल दिया, उपहार सच्चा.

लक्ष्य को सामने रख कर, जो मैंने पथ चुना था,
था कठिन, फिर भी, मैं, उसको पा गया था.

2 comments:

  1. To see Indian Crickcet Team winning a World Cup was a dream come true for me..Its was of the happiest moments of my life...
    This poem is very nice and inpirational especially for youngsters like me...I really liked it from my heart.

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  2. Thanks Sankalp, you are correct that its an inspirational poem.

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