हों सुखन ऐसे जहाँ में, चाँद तू ऐसा निकल.
जो भी मांगें, जो भी मांगे, मांगना हो न विफल.
की इबादत, हम सभी ने, एक दिन या चार दिन,
हम जुड़े तुझसे, सुकूँ दिल, कद्रदां तू अब पिघल.
तू मेरी मासूमियत का, जश्न कुछ ऐसा मना.
भोली भाली हरकतों से, "ईद" में सब मन विरल.
मांगता हूँ तुझसे ईदी, ए बुजुर्ग मेरे अज़ीज़.
मुआफ़ करना हर ख़ता पर, गर जवानी हम फिसल.
हर तरफ इंसानियत, बिखरा करे कुछ इस तरह.
खूँ, मरीजों को जिलाने, दान को अब सब निकल.
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ReplyDeleteधन्यवाद, संकल्प जी.
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