Monday, 1 August 2011

गीत – “सावन”

कुछरूठ गयींमेरी मोहतरमा
सावन को सलीका आ गया.

कुछ, देर लगी, मेरी रिश्वत में
सावन खुद करीना आ गया.

कुछदेर मेंवो खुद गईं शरमा
सावन का महीना आ गया.

कुछ, बहक गयीं, मेरी ख्वाहिशें
सावन को पसीना आ गया.

कुछउम्र गयीमेरी खिदमत में
सावन का मदीना आ गया.

6 comments:

  1. वाह ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  2. वाह ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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  3. संगीता स्वरुप "गीत" जी, प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद.

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  4. सदा जी, गीत आप को अच्छा लगा, यह जानकर ख़ुशी हुई.
    आप का फेसबुक पर भी स्वागत है.

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  5. विद्या जी, स्वागत है आप का.
    आप का फेसबुक पर भी स्वागत है.

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