कुछ, रूठ गयीं, मेरी मोहतरमा
सावन को सलीका आ गया.
कुछ, देर लगी, मेरी रिश्वत में
सावन खुद करीना आ गया.
कुछ, देर में, वो खुद गईं शरमा
सावन का महीना आ गया.
कुछ, बहक गयीं, मेरी ख्वाहिशें
सावन को पसीना आ गया.
कुछ, उम्र गयी, मेरी खिदमत में
सावन का मदीना आ गया.
वाह ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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संगीता स्वरुप "गीत" जी, प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteसदा जी, गीत आप को अच्छा लगा, यह जानकर ख़ुशी हुई.
ReplyDeleteआप का फेसबुक पर भी स्वागत है.
विद्या जी, स्वागत है आप का.
ReplyDeleteआप का फेसबुक पर भी स्वागत है.