आपको बतला रहा था, मैं कभी से दोस्तों
शाख पर उल्लू है बैठा, भा गया ए दोस्तों.
जागती जब सारी दुनिया, सो रहा आराम से,
रात में मज़बूर करता, जागने को दोस्तों.
है बड़ा मनहूस, सारी कौम पर दादागिरी
खून चूसे जा रहा है, जोंक सा ए दोस्तों.
गर गुलामी आपको, उसकी नहीं मंज़ूर हो
शाख से उसको भगाओ, आज फिर ए दोस्तों.
पूजती उसको है दुनिया, धन के वाहन के लिए
खुद है सोने सा है बैठा, कर दरख़्त ए दोस्तों.
सीख लो जड़ खोदना, आबो हवा औ सींचना
मौसमे बरसात में, बो दो कलम ए दोस्तों.
सब्र रखना मेहनतें हैं, रंग लायेंगी सभी
दूध और दही की नदियाँ, फिर बहें ए दोस्तों.
Very Nice Poem, Mama... Super Like !! :)
ReplyDeleteThanks Pulkit, Always welcome.
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