Monday, 15 August 2011

नज़्म - “उल्लू”

आपको बतला रहा था, मैं कभी से दोस्तों
शाख पर उल्लू है बैठा, भा गया ए दोस्तों.

जागती जब सारी दुनिया, सो रहा आराम से,
रात में मज़बूर करता, जागने को दोस्तों.

है बड़ा मनहूस, सारी कौम पर दादागिरी
खून चूसे जा रहा है, जोंक सा ए दोस्तों.

गर गुलामी आपको, उसकी नहीं मंज़ूर हो
शाख से उसको भगाओ, आज फिर ए दोस्तों.

पूजती उसको है दुनिया, धन के वाहन के लिए
खुद है सोने सा है बैठा, कर दरख़्त ए दोस्तों.

सीख लो जड़ खोदना, आबो हवा औ सींचना
मौसमे बरसात में, बो दो कलम ए दोस्तों.

सब्र रखना मेहनतें हैं, रंग लायेंगी सभी
दूध और दही की नदियाँ, फिर बहें    दोस्तों.

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